Friday, April 20, 2012

सिर्फ दैहिक सुख का साधन नहीं होता है विवाह...

shubh vivah
विवाह का एक आध्यात्मिक अभिप्राय भी होता है। दांपत्य को सामाजिक दृष्टि से ही न देखा जाए। पति-पत्नी होना स्त्री-पुरुष के लिए कोई शारीरिक कृत्य मात्र नहीं। इस रिश्ते में आध्यात्मिक अनुभूतियां जितनी गहन होंगी, रिश्ता उतना ही आनंददायक हो जाएगा। आज के दौर में सर्वाधिक मतभेद और आंतरिक तनाव इसी रिश्ते में देखा जा रहा है। आदमी दांपत्य के सुख से भी ऊब गया है और दुख से भी। जिन लोगों को दांपत्य में दुख ही दुख मिला हो, वे भी दुख से बाहर निकलने के लिए या तो आत्मघात जैसा कदम उठाते हैं या फिर गृहस्थी छोड़कर भागने लगते हैं। जिन्हें घर-गृहस्थी में बहुत अधिक सुख मिल गया हो तो या तो उनके भीतर अहंकार आ जाता है या वे विलास में डूब जाते हैं। पुनरावृत्ति सभी बातों की महंगी ही पड़ती है। इसीलिए शायद भगवान पति-पत्नी के रिश्ते में कभी मिठास तो कभी खटास देता है। आध्यात्मिक अनुभूति इस रिश्ते में एक-दूसरे को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि कैसी भी परिस्थिति हो, एक-दूसरे का परित्याग न किया जाए। टूटते-बिखरते हर तार को प्रेम से बांधा जाए। पति-पत्नी समझौता, सुलह, क्षमायाचना और क्षमादान करने के मामले में जितने सहज, सरल होंगे, रिश्ता उतना ही लंबा चल सकेगा। इसलिए सहानुभूति, शील, त्याग और प्रेम बनाए रखने के लिए अध्यात्म का स्पर्श इस रिश्ते में बड़े काम का है। इतना सब हो और सुख-दुख भी आता रहे तो इसे मणिकांचन योग कहेंगे।

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