Monday, May 14, 2012

सिर्फ इस एक कारण से बिगड़ते हैं पति--पत्नी के रिश्ते

copul hand
अक्सर पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव की एक बारीक सी डोर भी होती है। इसमें थोड़ा भी खिंचाव आने पर रिश्ते तन जाते हैं। ज्यादा दबाव दिया जाए तो टूट भी जाते हैं। ये डोर होती है अपेक्षा की। हम एक-दूसरे से जब रिश्ता जोड़ते हैं तो अपनी अपनेक्षाएं भी उसके साथ चिपका देते हैं। रिश्ता कोई भी हो हम उसमें कभी नि:स्वार्थ नहीं रह पाते हैं। हमारा कोई भी रिश्ता निष्काम नहीं होता। यह अपेक्षा ही तनाव और बिखराव का कारण बनती है। अपनों से की गई अपेक्षा तो और उपद्रव खड़े करती है। अपनों से अपेक्षा पूरी हो जाए तो शांति नहीं मिलती लेकिन यदि पूरी न हो तो अशांति जरूर ज्यादा हो जाती है। इसीलिए पति-पत्नी और रिश्तेदारों के बीच के संबंध हमेशा खटपट वाले बने रहते हैं क्योंकि हमने इनका आधार अपेक्षा बना लिया है। हम अपने भीतर पसंद, नापसंद का एक ऐसा आरक्षण कर लेते हैं कि जिसके कारण हम लोगों की अच्छाइयों से वंचित हो जाते हैं। हम जितना दूसरों की अच्छाइयों के निकट जाएंगे उतना ही अपने भीतर शांति पाएंगे। भागवत सिखाती है कि कैसे दाम्पत्य में अपेक्षा रहीत होकर ज्यादा सुखी रहा जा सकता है। भगवान कृष्ण की प्रमुख आठ पटरानियों में रुक्मिणी और सत्यभामा को देखिए। रुक्मिणी भगवान से निर्मल स्नेह और प्रेम रखती थीं। उन्हें भगवान का जितना साथ मिल जाए, उसी में सौभाग्य मानकर संतुष्टि मानती थी लेकिन इसके विपरीत सत्यभामा अक्सर भगवान से यह अपेक्षा रखती थीं कि वे ज्यादा से ज्यादा उनके पास रहें। हर जन्म में उन्हीं के साथ रहें। इस लालच में उन्होंने एक बार नारद की बातों में आकर भगवान को ही दान कर दिया। बहुत पीड़ा झेली, सौतनों की उलाहना भी सही। आपके दाम्पत्य में संतुष्टि का भाव होना चाहिए। जितनी ज्यादा अपेक्षा रखेंगे, उतनी ज्यादा परेशानी और अशांति आपको ही झेलनी पड़ेगी।

खुशहाल गृहस्थी के लिए पति-पत्नी के बीच ऐसा रिश्ता जरूरी है...

सफल गृहस्थी का आधार सुखी दाम्पत्य होता है। दाम्पत्य वो सुखी है जिसमें पति-पत्नी एक दूसरे के सम्मान और स्वाभिमान की मर्यादा को ना लांघें। पति, पत्नी से या पत्नी, पति से समान पूर्वक व्यवहार ना करें तो उस घर में कभी भी परमात्मा नहीं आ सकता। परमात्मा पे्रेम का भूखा है। जहां प्रेम और सम्मान होगा वहीं उसका वास भी होगा। पतियों का पुरुषत्व वाला अहंकार उन्हें स्त्री के आगे झुकने नहीं देता। कई महिलाओं के लिए भी पुरुषों के आगे झुकने में असहज महसूस करती हैं। बस यहीं से अशांति की शुरुआत होती है दाम्पत्य में। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में इसके संकेत दिए हैं। तुलसीदासजी ने शिव और पार्वती के दाम्पत्य का एक छोटा सा प्रसंग लिखा है। जिसमें बहुत गहरी बात कही है। प्रसंग है शिव-पार्वती के विवाह के बाद पार्वती ने एक दिन भगवान को शांतभाव से बैठा देख, उनसे रामकथा सुनने की इच्छा जाहिर की। यहां तुलसीदासजी लिखते हैं कि बैठे सोह कामरिपु कैसे। धरें सरीरु सांतरसु जैसे।। पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहि मातु भवानी।। एक दिन भगवान शिव शांत भाव से बैठे थे। तो पार्वती ने सही अवसर जानकर उनके पास गई। देखिए पत्नी के मन में पति को लेकर कितना आदर है कि उनसे बात करने के लिए भी सही अवसर की प्रतीक्षा की। जबकि आजकल पति-पत्नी में एक-दूसरे के समय और कार्य को लेकर कोई सम्मान का भाव नहीं रह गया। फिर तुलसीदासजी ने लिखा है - जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।। शिव ने पार्वती को अपना प्रिय जानकर उनका बहुत आदर किया। अपने बराबर वाम भाग में आसन बैठने को दिया। पति, पत्नी को आदर दे रहा है। ये भारतीय संस्कृति में ही संभव है। कई लोग आज गृहस्थी को जंजाल भी कहते हैं। लेकिन अगर एक-दूसरे के प्रति इस तरह प्रेम और सम्मान का भाव हो तो गृहस्थी कभी जंजाल नहीं लगेगी।

परिवार को एक रखना है तो इस तरह हो आपसी व्यवहार

pandavas
महाभारत में पांडवों के बीच रिश्तों की धुरी क्या थी। द्रौपदी प्रेम की एक डोर के रूप में मौजूद तो थी ही लेकिन सबसे बड़ा कारण था, पांचों भाइयों में भावनात्मक बंधन। पांचों भाई एक-दूसरे के प्रति इतने संबेदनशील थे कि कभी बिना कहे एक-दूसरे की भावनाओं, परेशानियों और समस्याओं को समझ जाते थे। धर्मराज युधिष्ठिर स्पर्श की भाषा को समझते थे। जब भी किसी भाई को कोई पीड़ा, परेशानी या दु:ख होता तो वे उसका हाथ पकड़ लेते थे। छोटे भाई को तत्काल पता चल जाता कि धर्मराज उसकी पीड़ा को समझ चुके हैं। उसे बड़े भाई का संबल मिल जाता। इसे कहते हैं स्पर्श की भाषा। अपनों के प्रति हमारी संवेदनशीलता। यही रिश्ते बनाती है, यही परिवारों को एक सूत्र में बांधे रखती है। इस समय हमारे पारिवारिक जीवन में जितनी समस्याएं चल रही हैं उसमें एक बड़ी समस्या है संबंधों में भावनात्मकता की कमी। संवेदनाओं के अभाव के कारण घर के सदस्य एक दूसरे के प्रति रूखे और सूखे हो गए हैं। अब तो कई घरों में हो रही बातचीत सुन और देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी मॉल के काउंटर पर लेन-देन हो रहा है या किसी कॉर्पोरेट ऑफिस के केबिन में मीटिंग हो रही है या पेढ़ी पर ब्याज-बट्टे का हिसाब चल रहा है। घर परिवार का हर सदस्य अपना सौदा खुटा रहा है। पिछले दिनों एक खबर सुनने में आई कि गर्भस्थ बालक की मुस्कान थ्री-डी स्केनिंग में फोटो के रूप में प्राप्त हुई है। चिकित्सा विज्ञान के जानकार लोगों का कहना है यह गर्भ में पलने वाले शिशु की संवेदना का मामला है। एक बात तो यह समझने जैसी है कि इसमें मुस्कान संवेदना की प्रतिनिधि क्रिया है। फिर बच्चे की मुस्कान तो और अद्भुत होती है। दरअसल बड़ा जब भी मुस्कराएगा समझ लीजिए बच्चे होने की तैयारी ही कर रहा होगा। अध्यात्म कहता है जैसे-जैसे समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे हम छोटे हो जाएंगे और जितने छोटे होंगे उतने ही विराट के प्रकट होने की संभावना बढ़ जाएगी। बल्कि छोटे होते-होते जितना खो जाएंगे बस उसके बाद फिर उसे पा जाएंगे जिसका नाम परमात्मा है।

परिवार सहेजें, ये ऊर्जा भी है और प्रेरणा भी...

happy family
परिवार एक माला है, जो प्रेम के धागे में पिरोई जाती है। सारे सदस्य इसके मोती हैं। एक मोती भी कम हो, टूट जाए, छूट जाए तो माला की सुंदरता खत्म हो जाती है। परिवार को सहेजें। परिवार के हर एक सदस्य का परिवार में बराबरी का महत्व होता है। हम परिवार के बिना अधूरे हैं। हम किसी भी परिस्थिति में रहें लेकिन हमेशा परिवार को साथ रखें। यह ऊर्जा और प्रेरणा दोनों का काम करते हैं। महाभारत में पांडवों को देखिए। कोई भी परेशानी हो, इंद्रप्रस्थ का निर्माण हो या वनवास। पांडव हर समय साथ रहते थे। जुए में हारने के बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास दिया गया था। दुर्योधन उन्हें लगातार परेशान करने में लगा था। बड़े भाई के कारण पूरा परिवार वनवास में भटकने को मजबूर हो गया लेकिन कोई भी भाई अपने बड़े भाई के विरुद्ध नहीं गया। सबने युधिष्ठिर के जुए में हार जाने के बाद भी परिवार को बिखरने नहीं दिया। ये आश्चर्यजनक है कि पांचों भाइयों ने सभी संकटों को मिल कर सामना किया। ये परिवार की ही शक्ति थी कि इतनी परेशानियों के बाद भी उन्होंने अपना राज्य और सम्मान फिर प्राप्त कर लिया। हमेशा याद रखें परिवार को साथ लेकर चलेंगे तो बड़े-बड़े संकट भी छोटे लगेंगे। परिवार को एक रखिए। यह हमारी सम्पत्ति भी है और हमारी प्रेरणा भी।

अगर एकांत में पति-पत्नी का व्यवहार ऐसा हो तो गृहस्थी स्वर्ग है...

hanuman
सुंदर कांड का प्रसंग है। जब हनुमान ने सीता को राम की अंगुठी दी। सीता चकित थीं और डरी हुई भी। वे ये मानने को तैयार नहीं थीं कि राम का दूत कोई वानर होगा। वो इसे रावण की ही कोई माया समझ रही थीं। हनुमान ने उन्हें समझाया और कहा रामदूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करूणानिधान की।। हे माता मैं भगवान राम का ही दूत हूं। करुणा निधान श्रीराम की ही शपथ खाकर कहता हूं। जैसे ही हनुमान ने श्री राम को करूणा निधान कहा, सीता को भरोसा हो गया कि ये राम का ही भेजा हुआ दूत है। ऐसा इस कारण से क्योंकि सीता ही भगवान राम को अकेले में करूणा निधान कहती थीं। अपने द्वारा उपयोग किया जाने वाला गुप्त संबोधन जब उन्होंने हनुमान के मुंह से सुना तो तत्काल पहचान लिया। आज के दाम्पत्य में ऐसा प्रेम नहीं है। पत्नी-पति के एकांत में संबोधन ऐसे हो सकते हैं जो शायद सार्वजनिक नहीं किए जा सकते हों। हमारे दाम्पत्य में अगर डोर प्रेम, आदर और विश्वास की है तो उससे बने संबोधन भी निश्चित ही सुंदर होंगे। पति-पत्नी को कोशिश करनी चाहिए कि एकांत में भी एक-दूसरे के लिए उपयोग किए जाने वाले संबोधनों में प्रेम, आदर दोनों झलके। अक्सर पति-पत्नी का एकांत सिर्फ तनाव या वासना इन दो भावों में से किसी एक का केंद्र होकर रह जाता है। अगर हम एक दूसरे के प्रति एकांत में भी वैसा ही आदर और प्रेम रखें तो रिश्तों में तनाव कभी आ ही नहीं सकता। वरन दाम्पत्य महकने लगता है। हमेशा प्रेम से रहें। जीवन साथी से कठोर लहजे में बात करने से पहले उसकी और खुद की, दोनों की गरिमा का ध्यान रखना जरूरी है।

Friday, May 4, 2012

Hindu Weddings; The Customs !!

Hindu sacraments are called 'sanskars' and the sacraments performed at the time of a wedding are called 'Vivah Sanskar'. This sanskar marks the start of the second and the most important stage of life called the 'Grihistha Ashrama' which involves setting up of a new family unit. Two individuals who are considered to be compatible form a lifelong partnership at this ceremony in which the responsibilities and duties of a householder are explained. The precise details and rituals performed in a wedding ceremony vary from region to region and often take several hours to complete. The main stages of a Hindu wedding are:

Jayamaala
Firstly, the bride's parents welcome the bridegroom and his family at the boundary of the house where the wedding is taking place. A red kum-kum (kind of powder) mark is applied to their forehead. Members from both families are formally introduced, marking the start of relationship between two families. The bride and the bridegroom then exchange garlands (jayamaala) and declare: "Let all the learned persons present here know, we are accepting each other willingly, voluntarily and pleasantly. Our hearts are concordant and united like waters." 

Madhu-Parka 
The bridegroom is brought to a specially decorated altar called 'mandap' and offered a seat and a welcoming drink - a mixture of milk, ghee, yoghurt, honey and sugar. 

Gau Daan and Kanya Pratigrahan 
'Gau' means cow and 'Daan' means donation. Nowadays, the symbolic exchange of gifts, particularly clothes and ornaments takes place. The groom's mother gives an auspicious necklace (mangala sootra) to the bride. Mangla sootra is the emblem of marital status for a Hindu woman. 'Kanya' means the daughter and 'Pratigrahan' is an exchange with responsiveness on both sides. The bride's father declares that their daughter has accepted the bridegroom and requests them to accept her. 

Vivaha-homa 
A sacred fire is lit and the Purohit (Priest) recites the sacred mantras in Sanskrit. Oblations are offered to the fire whilst saying the prayers. The words "Id na mama" meaning "it is not for me" are repeated after the offerings. This teaches the virtue of selflessness required to run a family. 

Paanigrahan
A sacred fire is lit and the Purohit (Priest) recites the sacred mantras in Sanskrit. This is the ceremony of vows. The husband, holding his wife's hand, says "I hold your hand in the spirit of Dharma, we are both husband and wife". 

Shilarohan and Laaja Homa 
Shilarohan is climbing over a stone/rock by the bride which symbolises her willingness and strength to overcome difficulties in pursuit of her duties. Both gently walk around the sacred fire four times. The bride leads three times and the fourth time the groom leads. He is reminded of his responsibilities. The couple join their hands into which the bride's brothers pour some barley, which is offered to the fire, symbolising that they all will jointly work for the welfare of the society. The husband marks the parting in his wife's hair with red kumkum powder for the first time. This is called 'sindoor' and is a distinctive mark of a married Hindu woman. 

Sapta-Padi 
This is the main and the legal part of the ceremony. The couple walk seven steps reciting a prayer at each step. These are the seven vows which are exchanged. The first for food, the second for strength, the third for prosperity, the fourth for wisdom, the fifth for progeny, the sixth for health and the seventh for friendship. In some regions, in stead of walking the seven steps, the bride touches seven stones or nuts with her right toe. A symbolic matrimonial knot is tied after this ceremony. A symbolic matrimonial knot is tied after this ceremony 

Surya Darshan and Dhruva Darshan 
The couple look at the Sun in order to be blessed with creative life. They look in the direction of the Dhruva (Polar star) and resolve to remain unshaken and steadfast like the Polar star. 

Ashirvada (Blessings) 
The couple are blessed by the elders and the priest for a long and prosperous married life. It is important to clarify two misconceptions about Hindu marriages: arranged marriages and child marriages. The couple are blessed by the elders and the priest for a long and prosperous married life Hindu scriptures prohibit use of force or coercion in marriages. Arranged marriages are based on agreement from both the bride and the groom, and should not be confused with forced marriages. In the Vedic period, child marriages were strictly prohibited. Later, due to political and economical changes, some new social traditions started which deviated from the Vedic teachings. Child marriages and the associated tradition of dowry were some of the deviations which reformist movements in modern times have attempted to correct. Child marriages are now banned by law in India, although reports suggest that the practice has not been eradicated.

Wednesday, May 2, 2012

दोस्त को भी नहीं बताना चाहिए पत्नी की ऐसी बातें, क्योंकि...

Aacharya Chankya
सफल वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी है कि पति-पत्नी के आपसी तालमेल अच्छा रहे। यदि तालमेल बिगड़ता है तो उनका जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। सफल वैवाहिक जीवन के संबंध में आचार्य चाणक्य ने पतियों को सलाह दी है कि-

अर्थनाशं मनस्तापं गृहिणीचरितानि च। 
नीचवाक्यं चाऽपमानं मतिमान्न प्रकाशयेत्।।

अर्थात् कुछ बातों को गुप्त रखना चाहिए जैसे हमारे धन का नाश, हमारा दुख, पत्नी का चरित्र, नीच या बुरे स्वभाव वाले व्यक्ति द्वारा कही हुई बातें, स्वयं का अपमान।

आचार्य चाणक्य कहते है कि यदि हमें आर्थिक हानि का सामना करना पड़ रहा है तो ये बात किसी को बताना नहीं चाहिए अन्यथा लोग धन संबंधी सहायता नहीं करेंगे। इसी प्रकार कोई दुख हो तो उसे भी किसी पर जाहिर नहीं करना चाहिए। सबसे जरूरी बात किसी भी स्थिति में व्यक्ति को अपनी पत्नी का स्वभाव, गोपनीय बातें, व्यवहार आदि नहीं बताना चाहिए। ऐसा करने पर बुरे स्वभाव वाले लोग किसी प्रकार का अनुचित लाभ उठा सकते हैं।

यदि जीवन में किसी नीच व्यक्ति द्वारा आपका अपमान किया गया है तो इसे भी गुप्त रखना चाहिए। क्योंकि ये बातें जाहिर होने से व्यक्ति समाज में हंसी का पात्र बन सकता है। बुद्धिमान या समझदार व्यक्ति को चाहिए वे इन सभी बातों को किसी पर जाहिर न करें। यहां तक कि किसी मित्र को भी इस प्रकार की बातें नहीं बताना चाहिए क्योंकि भविष्य यदि उस मित्र से किसी प्रकार का विरोध हुआ तो वह भी इन बातों का उपयोग आपको हानि पहुंचाने के लिए कर सकता है।