Monday, May 14, 2012

परिवार को एक रखना है तो इस तरह हो आपसी व्यवहार

pandavas
महाभारत में पांडवों के बीच रिश्तों की धुरी क्या थी। द्रौपदी प्रेम की एक डोर के रूप में मौजूद तो थी ही लेकिन सबसे बड़ा कारण था, पांचों भाइयों में भावनात्मक बंधन। पांचों भाई एक-दूसरे के प्रति इतने संबेदनशील थे कि कभी बिना कहे एक-दूसरे की भावनाओं, परेशानियों और समस्याओं को समझ जाते थे। धर्मराज युधिष्ठिर स्पर्श की भाषा को समझते थे। जब भी किसी भाई को कोई पीड़ा, परेशानी या दु:ख होता तो वे उसका हाथ पकड़ लेते थे। छोटे भाई को तत्काल पता चल जाता कि धर्मराज उसकी पीड़ा को समझ चुके हैं। उसे बड़े भाई का संबल मिल जाता। इसे कहते हैं स्पर्श की भाषा। अपनों के प्रति हमारी संवेदनशीलता। यही रिश्ते बनाती है, यही परिवारों को एक सूत्र में बांधे रखती है। इस समय हमारे पारिवारिक जीवन में जितनी समस्याएं चल रही हैं उसमें एक बड़ी समस्या है संबंधों में भावनात्मकता की कमी। संवेदनाओं के अभाव के कारण घर के सदस्य एक दूसरे के प्रति रूखे और सूखे हो गए हैं। अब तो कई घरों में हो रही बातचीत सुन और देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी मॉल के काउंटर पर लेन-देन हो रहा है या किसी कॉर्पोरेट ऑफिस के केबिन में मीटिंग हो रही है या पेढ़ी पर ब्याज-बट्टे का हिसाब चल रहा है। घर परिवार का हर सदस्य अपना सौदा खुटा रहा है। पिछले दिनों एक खबर सुनने में आई कि गर्भस्थ बालक की मुस्कान थ्री-डी स्केनिंग में फोटो के रूप में प्राप्त हुई है। चिकित्सा विज्ञान के जानकार लोगों का कहना है यह गर्भ में पलने वाले शिशु की संवेदना का मामला है। एक बात तो यह समझने जैसी है कि इसमें मुस्कान संवेदना की प्रतिनिधि क्रिया है। फिर बच्चे की मुस्कान तो और अद्भुत होती है। दरअसल बड़ा जब भी मुस्कराएगा समझ लीजिए बच्चे होने की तैयारी ही कर रहा होगा। अध्यात्म कहता है जैसे-जैसे समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे हम छोटे हो जाएंगे और जितने छोटे होंगे उतने ही विराट के प्रकट होने की संभावना बढ़ जाएगी। बल्कि छोटे होते-होते जितना खो जाएंगे बस उसके बाद फिर उसे पा जाएंगे जिसका नाम परमात्मा है।

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