युवा दंपत्तियों में कलहपूर्ण
दाम्पत्य और अशांत गृहस्थी आज आम बात है। पति-पत्नी में वैचारिक तालमेल का
अभाव, एक-दूसरे पर अविश्वास और धोखा ये मामले अक्सर देखने में आते हैं।
आखिर क्यों हमारे दाम्पत्य अशांत और रिश्ते विश्वास हीन होते जा रहे हैं।
इसके लिए कुछ चारित्रिक दोष तो कुछ हमारे वैवाहिक जीवन की शुरुआत जिम्मेदार
होती है।
वैवाहिक जीवन की शुरुआत कुछ ऐसी होनी चाहिए, जिसमें हम एक-दूसरे के प्रति अपना भरोसा और समर्पण देख-दिखा सकें। आज के युवा वैवाहिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों को अलग रखना चाहते हैं। इसी की होड़ में रिश्तों की मर्यादाएं टूटती हैं और गृहस्थी का कलह सड़क का तमाशा बन जाता है।
आइए, राम सीता के वैवाहिक जीवन से सीखें कि युवा दम्पत्तियों को कैसे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए। भगवान राम और सीता का विवाह हुआ। बारात जनकपुरी से अयोध्या आई। भारी स्वागत हुआ। राजमहल में सारी रस्में पूरी की गईं।
भगवान राम और सीता का दाम्पत्य शुरू हुआ। पहली बार भगवान ने पत्नी सीता बातचीत की। बात समर्पण से शुरू हुई। राम ने सीता से पहली बात जो कही वह समर्पण की थी। उन्होंने सीता को वचन दिया कि वे जीवनभर उसी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी। सीता ने भी वचन दिया, हर सुख और दुख में साथ रहेगी।
पहले वार्तालाप में भरोसे का वादा किया गया। एक-दूसरे के प्रति समर्पण दिखाया। तभी दाम्पत्य दिव्य हुआ। कभी आपसी विवाद नहीं हुए। हमेशा राम सीता के और सीता राम के कल्याण की सोचती थी। व्यक्तिगत अहंकार और रुचियां कभी गृहस्थी में नहीं आए।
वैवाहिक जीवन की शुरुआत कुछ ऐसी होनी चाहिए, जिसमें हम एक-दूसरे के प्रति अपना भरोसा और समर्पण देख-दिखा सकें। आज के युवा वैवाहिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों को अलग रखना चाहते हैं। इसी की होड़ में रिश्तों की मर्यादाएं टूटती हैं और गृहस्थी का कलह सड़क का तमाशा बन जाता है।
आइए, राम सीता के वैवाहिक जीवन से सीखें कि युवा दम्पत्तियों को कैसे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए। भगवान राम और सीता का विवाह हुआ। बारात जनकपुरी से अयोध्या आई। भारी स्वागत हुआ। राजमहल में सारी रस्में पूरी की गईं।
भगवान राम और सीता का दाम्पत्य शुरू हुआ। पहली बार भगवान ने पत्नी सीता बातचीत की। बात समर्पण से शुरू हुई। राम ने सीता से पहली बात जो कही वह समर्पण की थी। उन्होंने सीता को वचन दिया कि वे जीवनभर उसी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी। सीता ने भी वचन दिया, हर सुख और दुख में साथ रहेगी।
पहले वार्तालाप में भरोसे का वादा किया गया। एक-दूसरे के प्रति समर्पण दिखाया। तभी दाम्पत्य दिव्य हुआ। कभी आपसी विवाद नहीं हुए। हमेशा राम सीता के और सीता राम के कल्याण की सोचती थी। व्यक्तिगत अहंकार और रुचियां कभी गृहस्थी में नहीं आए।
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